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ज़ालिम हैं हम ज़फाएँ उठाने के बावजूूद / देवेश दीक्षित 'देव'

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ज़ालिम हैं हम ज़फाएँ उठाने के बावजूूद
मज़लूम वह हैं ज़ुल्म को ढाने के बावजूद

आदम समझ ले काश! फ़साना-ए-ग़म मेरा
हँसता है ज़ख्म चोट को खाने के बावजूूद

कैसा क़रार और भी बेताब हो गए
हम उनकी बज़्म-ए-नाज़ में आने के बावजूद

की तो बहुत ही कोशिशें नाकाम हो गयीं
आते रहे वह याद भुलाने के बावजूद

ये अपने-अपने 'देव' मुक़द्दर की बात है
ख़ोया है हमने आपको पाने के बावजूद