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ज़िंदगी, तेरे क़ैदख़ाने में / श्याम कश्यप बेचैन

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ज़िंदगी, तेरे कै़दख़ाने में
फ़र्क़ आएगा क्या दीवाने में

वो लगे हैं हँसी उड़ाने में
गिर पड़े हम जिन्हें उठाने में

मेरी नाकामियाँ लगी ही रहीं,
हर घड़ी हौसला बढ़ाने में

मिट गया भीगकर पसीने से
नाम लिक्खा था दाने-दाने में

पत्थरों का जवाब है पत्थर
सर तुड़ाओ न सर बचाने में

आज फिर उठ गए बहुत जल्दी
छोड़ कर ख़ुद को हम सिरहाने में