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ज़िंदगी की शाम में अब ढल रही हर याद है / रचना उनियाल
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ज़िंदगी की शाम में अब ढल रही हर याद है,
कल सनम तेरे हुये पर आज दिल की रात है।
आँख से कतरा बहा जैसे बहे शबनम कोई,
ये मुहब्बत को जताता शबनमी ये दाद है।
घाव दिल पे हैं हज़ारों काश कहते दर्द को,
बह रहा आँखों समंदर बह रही हर बात है।
ख़्वाहिशों को जज़्ब करके जी सनम ये ज़िंदगी,
काश तुम भी जान पाते ये दिली सौग़ात है।
लाख कोशिश से संभाली डोर दिल की ओ सनम,
साथ यूँ ऐसे कटा अब दिल कहाँ आबाद है।
हर सुहानी शाम से लिपटे रहे ख़त आज भी,
देख लूँ उनको ज़रा तो शबनमी बरसात है।
इश्क़ का हर फ़लसफ़ा है ज़िंदगी ‘रचना’ कहे,
रूठ जाये आशिक़ी तो ज़िंदगी बरबाद है।