ज़िंदगी को उदास कर भी गया
वो के मौसम था इक गुज़र भी गया
सारे हमदर्द बिछड़े जाते हैं
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया
ख़ैर मंज़िल तो हमको क्या मिलती
शौक़-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया
मौत से हार मान ली आख़िर
चेहरा-ए-ज़िंदगी उतर भी गया
ज़िंदगी को उदास कर भी गया
वो के मौसम था इक गुज़र भी गया
सारे हमदर्द बिछड़े जाते हैं
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया
ख़ैर मंज़िल तो हमको क्या मिलती
शौक़-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया
मौत से हार मान ली आख़िर
चेहरा-ए-ज़िंदगी उतर भी गया