भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िंदगी बेकार तेरे प्यार में / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
ज़िंदगी बेकार तेरे प्यार में।
हो गयी तकरार तेरे प्यार में।।
कौन कहता प्यार अंधा है यहाँ।
बन गया झंखार तेरे प्यार में।।
नाज नखरे खूब तुम हो जानती।
दो तरह की धार तेरे प्यार में।।
हीर रांझा की कहानी याद कर।
वो कहाँ झंकार तेरे प्यार में।।
लूट कर बरबाद कर दी तू मुझे।
सूख गया मझधार तेरे प्यार में।।