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ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाए हम तो क्या / मुनीर नियाज़ी
Kavita Kosh से
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाए हम तो क्या|
दुनिया में ख़ामोशी से गुज़र जाए हम तो क्या|
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने,
एक ख़्वाब हैं जहां में बिखर जाए हम तो क्या|
अब कौन मुंतज़िर<ref>इंतज़ार करने वाला</ref> है हमारे लिये वहाँ,
शाम आ गई है लौट के घर जाए हम तो क्या|
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र,
दरिया-ए-ग़म के पार उतर जाए हम तो क्या|