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ज़िक्र जब मेरा आ गया होगा / कांतिमोहन 'सोज़'

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ज़िक्र जब मेरा आ गया होगा।
एक सकता<ref>सन्नाटा</ref> सा छा गया होगा।।

आज क्यूँ इन्तज़ार है उसका
कल वो भूले से आ गया होगा।

रोएँगे हम वो मुस्कुराएँगे
उनकी महफ़िल है और क्या होगा।

ये जो एक बाब<ref>अध्याय</ref> है मोहब्बत का
ख़ूने-दिल से लिखा गया होगा।

मैं न कहता था और ज़ुल्म न कर
हुस्न पहले से कुछ सिवा<ref>अधिक</ref> होगा।

दर्द करता था मेरी दिलजोई<ref>दिलासा</ref>
वो भी थक कर चला गया होगा।

सोज़ की बात का भरोसा क्या
कोई क़िस्सा सुना गया होगा।।

शब्दार्थ
<references/>