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ज़िन्दगानी / श्वेता राय

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चार दिन की जिंदगानी।
नित गढ़ो नूतन कहानी॥

तेज दिनकर का भरो तुम।
धीर सागर का धरो तुम॥
चंद्र सम शीतल बनो तुम।
तरु बने जिद पर तनो तुम॥
ले नदी से फिर रवानी।
नित गढ़ो नूतन कहानी॥

छल कपट से दूर रहना।
मत किसी को शत्रु कहना।
मित्र बन संताप हरना।
राह में बढ़ हाथ धरना॥
भूल कर बातें पुरानी।
नित गढ़ो नूतन कहानी॥

राग हिय में तुम भरो सब।
प्रीत जीवन में करो सब॥
मन बनाओ भाव सुरभित।
छेड़ दे जो गीत मधुरित॥
भूल के निदियाँ सुहानी।
नित गढ़ो नूतन कहानी॥

चार दिन की जिंदगानी।
नित गढ़ो नूतन कहानी॥