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ज़िन्दगी को हिसाब में रखिये / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

ज़िन्दगी को हिसाब में रखिये
आबरू के दबाब में रखिये

दुश्मनी के सभी सवालों पर
दोस्ती को जवाब में रखिये

कोई कमज़र्फ़ पेश आ जाये
ख़ुद को अपने सबाब में

ज़िन्दगी बेसबब लगे तो उसे
चाँद और माहताब में रखिये

मैकशी आपको न पी जाये
ये सलीक़ा शराब में रखिये

मंज़िलों के लिये ज़रूरी है
इज़्तराबी को ताब में रखिये

यूँ भी रुस्वा अज़ीम होता है
कुछ हलीमीं रुआब में रखिये

मौत-दर-मौत लम्हा -लम्हा है
ज़िन्दगी को तो ख़्वाब में रखिये

देखिये फिर उसे ज़रा ‘परवेज़’
थोड़ी शबनम गुलाब में रखिये