ज़िन्दगी भर मुझे काम ही काम हो।
काम से नाम हो शाद अंजाम हो॥
तीरगी मिट सके रोशनी मिल सके
मैं जहाँ भी रहूँ वह धरा-धाम हो।
देखने को मिले चार-सू हर खुशी
गीत-संगीत से खुशनुमा शाम हो।
कोई छीने नहीं अब किसी का भी हक़
मेरी रचना में ऐसा ही पैगाम हो।
आपने साथ मेरा दिया आज तक
मेरे लब पर सदा आपका नाम हो।
राह में मैं कभी भी भटक जाऊँ तो
थामने को मुझे हमसफर श्याम हो।