Last modified on 1 जून 2018, at 20:36

ज़िन्दगी से न कुछ गिला करना / अशोक 'मिज़ाज'

ज़िन्दगी से न कुछ गिला करना,
हर मुसीबत का सामना करना।

जब सफ़र ही सफ़र की मंजिल है,
सुब्ह का इंतज़ार क्या करना।

मंज़िलें ख़्वाब बनके रह जायें,
इतना बिस्तर से प्यार क्या करना।

मेरे हिस्से में चंद ग़ज़लें हैं,
क़ाग़जों का हिसाब क्या करना।