ज़िन्दगी से हज़ारों शिकवे हैं
कितने सच्चे और कितने झूठे हैं
जिनका ज़िन्दा ज़मीर है यारो
ऐसे इंसाँ जहाँ में कितने हैं
दरमियाँ फासले है मिलों के
यूँ तो मिलने को रोज़ मिलते हैं
तुम कहो किस की बात करते हो
ज़िन्दगी के हज़ारों किस्से हैं
मैंने सोचा कि मैं ही अच्छा हूँ
लोग मुझ से भी कितने अच्छे हैं
जो इधर से उधर की करते हैं
लोग ‘इरशाद’ कितने फितने हैं