भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार / अहसनुल्लाह ख़ान 'बयाँ'
Kavita Kosh से
ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार मुझे
तेरी आँखों ने किया आप सा बीमार मुझे
दिल बुझा जाए है अग़्यार की शोरिश पे मेरा
सर्द करती है तेरी गर्मी-ए-बाज़ार मुझे
अक़्ल ही मोजिब-ए-तकलीफ़ हुई है नादाँ
कर गई बे-ख़बरी आ के ख़बर-दार मुझे
तख़्त और चित्र सलातीं को मुबारक होवे
बस है कूचे में तेरे साया-ए-दीवार मुझे
जूँ मिसाल उस की नुमूदार हुई तूँ ही 'बयाँ'
तपिश-ए-दिल ने किया ख़्वाब से बेदार मुझे