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ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी / सिकंदर अली 'वज्द'
Kavita Kosh से
ज़ुल्मत-ए-शब ही सहर हो जाएगी
शिद्दत-ए-ग़म चारागर हो जाएगी
रोने वाले यूँ मुसीबत पर न रो
ज़िंदगी इक दर्द-ए-सर हो जाएगी
बाद-ए-तामीर-मकाँ ज़ंजीर-ए-ग़म
उल्फ़त-ए-दीवार-ओ-दर हो जाएगी
ला दलील-ए-इश्क-ओ-मस्ती दरमियाँ
ख़त्म बहस-ए-ख़ैर-ओ-शर हो जाएगी
ज़िक्र अपना जा-ब-जा अच्छा नहीं
सब कहानी बे-असर हो जाएगी
सुब्ह-ए-राहत के तसव्वुर के तुफ़ैल
हर शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाएगी
सिर्फ़-ओ-अज़्म-ए-आतशीं दर-कार है
उम्र सर-गर्म-ए-सफ़र हो जाएगी
आ रहा है इंक़िलाब-ए-हश्र-ख़ेज
ज़िंदगी ज़ेर ओ ज़बर हो जाएगी