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जां फिर से लरज़ उट्ठी, दिल दर्द से भर आया / शहरयार

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जां फिर से लरज़ उट्ठी, दिल दर्द से भर आया
इक ऐसा नया मंज़र आंखों को नज़र आया

हर गाम पे रस्ते में थीं धूप की दीवारें
मुझ जैसा बरहना-सर उनसे भी गुज़र आया

दरिया तेरी मौजों की अंगड़ाइयां गिनता हूँ
प्यासा हूँ, मुक़द्दर में यह एक हुनर आया

बेदार दरीचों पर दस्तक-सी सुनाई दी
जब-जब कभी भूले से मैं लौट के घर आया

पहले तुझे देखा था परछाईं की सूरत में
फिर जिस्म तेरा मेरी रग-रग में उतर आया।