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जागना पर वही / नंदकिशोर आचार्य
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नींद नई होती जाती
हर रात
गुज़रता हुआ जिस से
सोचता हूँ :
जागूँ भी शायद
नई किसी दुनिया में
हर सुबह पर
लौटा लाती है मुझे
इसी दुनिया में
थकना जिस से हर रात
नींद को नया करता है
हर रात नींद है नई
जागना पर वही ।
—
12 नवम्बर 2009