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जागर / शैलेय
Kavita Kosh से
औरतें जो भर-भर कर घास-पानी लाती हैं
हलवाहे जो ऊसर को भी हरा-भरा करते हैं
बच्चे जो सपनों के पंख होते रहते हैं
अक्सर यही लोग होते हैं
भूत-प्रेत, छल, बुरी नज़र के शिकार
कुलदेव की मनौती ख़त्म नहीं होती
ख़त्म हो जाती है
ज़िन्दगी की बघार...
मगर दाढ़ी में तिनके और नींद में स्वप्न की तरह
कुछ बिगड़ैल बच्चे
एक रोज़ / असलियत की भी ख़बर ले आते हैं
पुरोहित / पटवारी
परधान के ख़िलाफ़
धीरे-धीरे लामबंदी हो रही है