जागें रे इन्सान / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
धरती पर धरती वाला के ई कैन्होॅ अत्याचार
एक दोसरा के रोटी छिनै लेॅ, कैन्हें ई व्यवहार।
के लूटै छै आजाद देश में, मेहनतकश मजूरोॅ केॅ
रोटी बदलां के करै छै, ई रं आँसू रोॅ व्यापार
भाय-भाय केॅ मारै लेली, छोड़ै तीर कमान।
जागें रे इन्सान।
सीना तानोॅ, जोर जुलुम के टक्कर में तोंय तूफान बनोॅ
भारत भाग्य सुधारै लेली, भारत के भगवान बनोॅ
पंच बनी जें लूटै छौं तोरा, ओकरा लेॅ अग्निवाण बनोॅ।
बलि माँगै छौं काल मसानी, दहोॅ आय बलिदान
जागें रे इन्सान।
झूठेॅ कहै छौं कोय तोरा कि आगू अँधेरा छौं
देखोॅ बढ़ी तनी दूर पर ही सोनोॅ सबेरा छौं।
राज यहाँ छौं धनवानोॅ के, संसद सड़क उदास
तरुण देश रोॅ जागोॅ आबेॅ, तोरे एक सहारा छौं।
दीन दलित तेॅ जगबेॅ करतै, जगतै आय किसान
जागें रे इन्सान।
तांडव के तालोॅ पर जे नाचै, ऊ शिवशंकर केॅ याद करोॅ
शिवा-प्रतापोॅ केॅ आवै लेॅ, फेरू सें फरियाद करोॅ।
बिना अर्थ के यै सूराज लेॅ, फेरू सें जयनाद करोॅ
कुपथमार्ग जे देशोॅ केॅ हाँकै, ओकरा नै आबाद करोॅ।
लाज मरै छै लाजोॅ सें, ओकरा नै लाज ईमान
जागें रे इन्सान।
हाय! जनसेवा के नामोॅ पर, ठगै देश रोॅ नेता छै
देशोॅ के जानै नै हाल ठिकाना, कैन्हों ई विश्व-विजेता छै।
चित्थी-चित्थी देशोॅ रोॅ हालत, कैन्होॅ ई कर्ता-धर्ता छै
कौर मुँहोॅ के छीनैवाला, हमरोॅ अजबे भाग्य विधाता छै।
हुंकार हिमालय करी कहै छौं, लानोॅ नया विहान
जागें रे इन्सान।