भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जागो बंसीवारे ललना / भजन
Kavita Kosh से
जागो बंसीवारे ललना
जागो बंसीवारे ललना जागो मोरे प्यारे ..
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवाड़े .
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना की झनकारे ..
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाड़े द्वारे .
ग्वालबाल सब करत कोलाहल जय जय शब्द उचारे ..
माखन रोटी हाथ में लीजे गौअन के रखवारे .
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर शरण आया को तारे ..