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जागो मानसी / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
तुम आज़ाद देश की नारी
मत कहना किस्मत की मारी
लो अधिकार बनो अधिकारी
जर्जर संस्कारों को त्यागो
जागो मानुषी, जागो
देवी, दासी, नहीं दानवी
मात्र बनी रहो मानवी
लेकर आन-बान-शान भी
अपनी लगन में लगो
जागो, मानवी, जागो।
इतिहास मानसी है भयभीता
आज बरजती तुमको सीता
दु्रपद सुता कहती बन गीता
झूठे आदर्शों को त्यागो
जागो, मानसी, जागो
नारी की गरिमा बनी रहे
अधिकार चेतना जगी रहे
न कर्मबोध में कमी रहे
नर सम नारी अनुरागो
जागो, नारी जागो
जंग लगे कवचों को छोड़ दो
इतिहासों को नया मोड़ दो।
नये-नये अध्याय जोड़ दो
चिर बंध दासता त्यागो
जागो भद्रे जागो।