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जाग रै इन्सान क्यूं सोवै, लुट गी तेरी कमाई / रामेश्वर गुप्ता

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जाग रै इन्सान क्यूं सोवै, लुट गी तेरी कमाई
क्यूं पत्थर होया गात तेरा, ना आच्छी घणी समाई
 
रहे बुला हम सब बिदेशां नै, म्हारे देश म्हं आओ
सारा थारा हुक्म चलेगा, बस थम उद्योग लगाओ
सारा कुछ हो थारै हवाले, चाहे लूट-लूट कै खाओ
भोपाल गैस से काण्ड करो, अर जनता नै मरवाओ
‘कारबाईड‘ सै याद आज तक, ना पूरी पड़ै दवाई
 
खुल्ले पण का खेल सै सारा, सब दरवाजे खोल दिए
खेती आळे खेत खोस कै, अब मिट्टी के मोल दिए
कानून-कायदे थे जो सरकारी, उन्हीं के हवाले बोल दिए
आज म्हारे हक राजा नै, रद्दी के भा तोल दिए
इब उन के तळवे चाटेंगे, अडै़ सरतू अर भरपाई
 
नौ सौ रूपये कविंटल लेवैं, जमींदार की चीज
कई गुणा मंहगी होज्या सै, साहूकार की चीज
हम भी खुश खरीद कै, भाई बाहर की चीज
विदेशी लोग अपणी समझैं, सरकार की चीज
भारत की बणी चीज खरीदें, हो ज्या सै रूसवाई
 
म्हारी तरक्की का ढौंग करैं, फैदा ठाणा चाहवैं
विदेशी पूंजी अर नेता, गठजोड़ बिठाणा वाहवैं
खुल्लेपण की आड़ ले कै, गुलाम बणाणा चाहवैं
‘रामेश्वर‘ हम देश बेच कै, क्यूं गिरकाणा चाहवैं
ज्ञान का सूरज सिर पै सै ईब, जाग नींद तैं भाई