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जाते हुए देखना / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
उसे जाते हुए देखना
एक तकलीफ़देह अनुभव था
धीरे-धीरे वह ओझल होती
जा रही थी
जैसे गली का मोड़ आया
वह मुड़ गई
अब उसे देख पाना कठिन था
मोड़ खतरनाक होते हैं
वह हमारा पूरा जीवन
बदल देते हैं
वह आएगी — यह कह कर गई थी
मैं यह सोच कर ख़ुश था
कि वह आएगी
इस तरह दिन, महीने, साल
गुजर गए — वह नहीं आई
मैं वहीं रूका हुआ हूँ
जहाँ से वह गई थी
और मुझे उसके रूकने की जगह
नहीं मालूम है