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जात का भय / असंगघोष
Kavita Kosh से
साँय-साँय करती
सर्द हवाएँ
घटाघुप्प अंधकार
बियाबान जंगली रास्ता,
दोनों ओर नंग-धड़ंग
ऊँचे पहाड़ों पर फैला
खौफनाक सन्नाटा
जिसे रह-रह कर तोड़ती
सियार-झींगुरों की
तेज ककर्श आवाजें
इन सबसे
भयभीत हो
तुम
डरो मत!
गुफा में
पसरे अँधेरे को
साहस के चाकू से चीरते हुए
एक तेज चीख से
चमगादड़ों को भगाते
पगडंडी के रास्ते
उतर जाओ
हाँफो मत
धँसों गहराई तक
जब तक है दम
पूरी ताकत से धँसो
फिर निढाल हो
घबराए बगैर पड़े रहो
स्फूर्त होने तक
बार-बार उतरने
इस वर्ण व्यवस्था की
अँधेरी गुफा के अन्दर
जात के भय को
नेस्तनाबूद करने।