भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानकार / हरिओम राजोरिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


उनकी आँखों में जादू-सा सम्मोहन था
ज्ञान के दम्भ से दमकता था उनका चेहरा
एक रूढ़ हो चुकी
भाषा के तीरकमान थे उनके पास
उन्हें सुने बगैर गुजर पाना मुश्किल था
हर नये आदमी से वे कहते,
‘लेना हो तो झुककर लो’
इस तरह ज्ञान देने से पहले
वे झुकना सिखाते हर एक को

मुस्काते-मुस्काते थकते न उनके होंठ
कोई बोलता तो रोक देते इशारे से
कहते प्रश्नाकुलता अच्छा गुण है
पर बोलने से पहले आज्ञा तो ले लो

हम जो कहते हैं उसी में छुपे हैं समाधान
मनन करो ! गूढ़ बातों की तह तक जाओ
गहरे उतरोगे तो
छँट जाएगा आत्मा का अन्धकार
भीतर पैठकर ही मिलेंगे ज्ञान के मोती

खोलकर देखो अपने ज्ञान-चक्षुओं को
वे मुक्त होने का मन्त्र देते
इस भव की यन्त्रणाओं का करते बकान
तरह-तरह से डरना सिखाते
तरह-तरह से करते भय की निष्पत्ति।