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जानकी रामायण / भाग 7 / लाल दास

चौपाई

धेश वेश तहँ कहल उलूक। सुनु नारद एहि मे जनु चूक॥
गान प्रसाद बढ़य बड़ मान। बड़ प्रसन्न गानेँ भगवान॥
पूर्व कयल हम हरि अपमान। हरि मित्रक बरसौ भेल त्रान॥
तनिक प्रसादेँ पाओल गान। रहथि प्रसन्न सदा भगवान॥
नारद पुछल कोना से भेल। तत उलूक तिहिपुर यश लेल॥
गान बन्धु सुनि मुनि काँ कहल। पूर्वक चरित्र अपन जे रहल॥
सुनि मुनि पूर्वक हमर चरित्र। कहयित छी निज कथा विचित्र॥
पूर्व काल भुवनेश्वर नाम। राजा एक रहथि गुण धाम॥
कयल बहुत से यज्ञ विधान। देल कते ब्राह्मण काँ दान॥
प्रजा गणक रक्षा से करथि। राज काजमे ततपर रहथि॥
रह तनिको एक दोष महान। सुनथि कदापि न हरि गुण गान॥
अपनहि काँ बड़ मानथि श्रेष्ठ। राज्य मदें मातल हत चेष्ट॥
कतहु करय जे हरि गुण गान। दण्ड पाव से यदपि महान॥
अनुचर काँ अनुशासन देल। हरि गुण गान निवारण भेल॥
जे जन कर विष्णुक गुण गान। अथवा आनक करय बखान॥
तनिकाँ बान्धह कारागार। दण्ड करह दय दण्ड प्रहार॥
गावथु हमर चरित नर नारि। मागध सूत कहथु यश झारि॥
जे जन कर आज्ञा विपरीति। तनिकाँ मारह दय दय भीति॥
आज्ञा मात्र दूत सभ देश। जाय सुनाओल नृपक निदेश॥
सज्जन हरिजन काँ भेल कष्ट। हरि गुण गान सभक भेल नष्ट॥
विष्णु भक्त नामक हरि मित्र। रहथि एक द्विज परम पवित्र॥
हरि पूजन नित करथि सप्रेम। गाबथि हरिक सुयश कय नेम॥
सुनलनि नृपक उद्भव घोर। मन मन चिन्ता कयल न थोर॥
से ब्राह्मण नृप नगर निकट। नदी तीर देखल वन विकट॥
ततहि जाय हरि मूर्ति बनाय। विधि सौं पूजथि ध्यान लगाय॥
धूप दीप दधि धृत मिष्टान्न। पायस आदिक खटरस अन्न॥
करथि निवेदन विष्णुक प्रीति। कय प्रणाम गाबथि हरि गीति॥
विविध ताल युत बजबथि बीन। हरि केँ सुनबथि गान नवीन॥
गाबथि जखन गीति लय लाय। प्रेम पयोनिधिमे डूबि जाय॥
एहि विधि पूजथि जाय एकान्त। गाबि रिझाबथि कमला कान्त॥
नृपक त्रास सौं अत्युष क्षिप्र। वनमे जाय गाव से विप्र॥
क्यो नहि जानय ई सभ भेद। करथि गान हरि मित्र अखेद॥
एक दिन नृप अनुचर तहँ गेल। गवयित द्विज काँ देखयित भेल॥
कयल शोर पकड़ल हम चोर। मारल नृप भट दण्ड कठोर॥
नैवैद्यादिक सभ उपहार। नष्ट कयल सभ फेकल धार॥
तनिकाँ पकड़ि नृपक लग गेल। गारि मारि क्रोधेँ कति देल॥
हरि मित्रक सभ धन हरि लेल। राज्यहु सैं बाहर कय देल॥

दोहा

जतय जतय हरि भजन हो, तकि तहि फिर नृप दूत।
गायक गण काँ पकड़ि से, दण्ड करय अब धूत॥

चौपाई

एहि विधि किछु दिन बीतल जखन। पड़ला नृप कालक वश तखन॥
धय लेलक तनिकाँ यम दूत। भेल उलूकक तत उद्भूत॥
यम किकर यमपुर लय गेल। गण्ड प्रचण्ड खण्ड सौं देल॥
दुख भोगथि नहि जाइन्ह प्रान। कर्म विवश पछताथि निदान॥
भुखेँ पीड़ित फिरथि सदाय। कतहु न हो भोजनक उपाय॥
धर्म्मराज काँ कहलनि दीन। भुखेँ हम वड़ भेलहुँ क्षीन॥
कृपा करिय भोजन किछु भेट। शान्त रही पूरित हो पेट॥
कहलनि यम कयलनि वड़ पाप। हरि मित्रक पड़लहु सन्ताप॥
हरि नैवेद्य करौलह नष्ट। तेँ पवयित छह भूषे कष्ट॥
जे कयलह मख देलह दान। से सभ नष्ट भेलहु हत ज्ञान॥
छल भल पूण्य होइत सुख वास। हरिक विरोधे भेलहु नाश॥
गिरी कोटरमे वसह सदाय। कतहु न हो भोजनक उपाय॥
पूर्वक जे छहु अपन शरीर। खाह सैह जनु रहह अधीर॥
मन्वन्तर गत होयत जखन। होयतहु पुनि दोसर तखन॥
कुकुर तन हयतहु किछु काल। भोगवह कयलह कर्म कराल॥
तदुपरि मानुष हयबह जाय। पयबह कर्मक फल समुदाय॥
ई कहियम भेल अन्तर्धान। हमहू कयल तखन प्रस्थान॥
चल अयलहु हम उत्तर देश। मानस गिरीमे कयल प्रवेश॥
एहि तन सौं गिरी कोटर पोसि। लगलहु खाय मृतक तन बैसि॥
देव योग सौं तह एक काल। जाइत देखल विमान विशाल॥
तेहि पर चढ़ल छला हरि मित्र। गवयित अप्सरि तनिक चरित्र॥
विष्णु दूत सौं भरल विमान। नृत्य वाद्य सुन्दर हो गान॥
रथ पर सौं हरि मित्र सुजान। देखि मृतक कयलन्हि अनुमान॥
चिन्हलन्हि भुवनेशक थिक देह। पड़ल कियैक उलूकक गेह॥
हमर क्रिया देखल अति विकट। चल अयला झट हमरहि निकट॥
हमरा पूछल तनिक वृत्तान्त। भुवनेशक तत एतय एकान्त॥
की कारण भक्षण अहँ करिय। हे उलूक हमरा से कहिय॥
तखन विषय हम कहल बुझाय। जे छल अपन क्रिया समुदाय॥

सोरठा

सुनि चरित हरि मित्र, देखि दशा व्याकुल परम।
कहलनि वचन पवित्र, करुणा सौं हमरा तखन॥

चौपाई

छलहू उलूक अहाँ महिपाल। हमर हेतु दुख पड़ल विशाल॥
यद्यपि अहँ सौ अनुचित भेल। से सभ एखन बिसरि हम देल॥
जे किछु पूर्व कयल अपराध। से सभ क्षमा कयल निर्बाध॥
मृतक देह ई जाओ विलाय। कुकुर नहि होयब महि जाय॥
अहँक पाप सभटा हो नष्ट। अब जनु पड़ओ अहाँ काँ कष्ट॥
एखनहि प्राप्त हो औ शुभ ज्ञान। सुखित रहू हमरे वरदान॥
प्राप्त हो औ सभ सामक गान। करथु अहँक श्री हरि कल्याण॥
अहँक पाप सभटा हो नष्ट। हरि गुण गाउ वचन हो पष्ट॥
विद्याधर किन्नर गन्धर्व। सीखयु गान अहाँ सौ सर्व॥
गाना चार्य्य अहाँ भय जाउ। विविध पदार्थ भक्ष्य नित खाउ॥
नारायण करता कल्याण। जनु चिन्ता करु भय गेल त्राण॥
पूर्व अहाँ जे कयल विरोध। हमरा रहल तकर नहि क्रोध॥
परमेश्वरक भजन नित करिय। सुख सौं भोग्य करिय संचरिय॥
दय हमरा वर कय विश्राम। तखन गेला अपने हरि वाम॥

दोहा

एहि विधि सभ दूखन बिसरि, बड़ कयलनि सद्भाव।
हरिजन साधुक सरल गति, कोमल सहज स्वभाव॥

चौपाई

हे मुनि तखनहि मृतक शरीर। भेल अदृश्य रहल नहि थीर॥
अमृतमय भोजनक प्रकार। आबय लगल बारम्बार॥
मनमें भय गेल बड़ विज्ञान। पष्ट भेल बर बचन निधान॥
बाढ़ल हरिपद प्रीति अभंग। गाबय लगलहु राय तरंग॥
आयल राग विविध विस्तार। पाओल हरिपद प्रीति अपार॥
हमर गान सुरलोकहु ख्यात। आबथि सुनथि अमर संघात॥
कयल अनुग्रह बड़ हरि मित्र। हम भेलहु सभ भांति पवित्र॥
सर दुर्लभ सुख हमरा नित्य। भेल सकल साधुक साहित्य॥
अनुचित यद्पि कयल हम जानि। साधु क्ष्मा कयलनि सन मानि॥
देलनि हमरा अभय प्रदान। दुख समुद्र सौं पौलहुँ त्रान॥
हम हरि मित्रक वरक प्रसाद। पाप रहित से बिगत विषाद॥
रहथि प्रसन्न सदा भगवान। तेँ हमरा होइछ बड़ मान॥
गाना चार्य्य हमर भेल नाम। सुनथि आबि सुर आदिक साम॥
गेल हमर चिन्ता दुख दूर। भेल सुलभ सभ सुख परिपूर॥

रूपमाला छन्द

कहल हम निज चरित अद्भुत पूर्व जन्म जे भेल।
सुनथि पावन बिमल यश हरि मित्र जे वर देल॥
तनिक पाप कलाप क्षनमे छुटथि हरिपुर जाथि।
करथि नित आनन्द भव बन्धनहु सौं छुटि जाथि॥