भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानल करोॅ-मानल करोॅ / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोली केॅ कान सुनलोॅ करोॅ, दै केॅ ध्यान सुनलोॅ करो।
स्वच्छता अभियान के बात, जानलोॅ करोॅ-मानलोंॅ करोॅ॥

सरकारी भवन आरो विद्यालय,
केना केॅ साफ रहतौं हो भाय
रसोयघर आरो शौचालय,
एकरोॅ साफ राखै के उपाय।
जेकरा सेॅ जिनगी रोॅ गाड़ी चलै छौं
ओकरा पेॅ ध्यान तनी देलोॅ करोॅ॥

कूड़ा-करकट जल्दी हटाबोॅ
फेरू नै गंदा करिहोॅ हो भाय
गंदा पानी जमा नै राखिहोॅ
नाली सेॅ बहईयो हो भाय।
एकरा सेॅ नै बढ़तौं प्रदूषण
आपन्हौं सेॅ काम तनी करलोॅ करोॅ॥

शौच के बाद आरो खाय सेॅ पैह्ने
की करना छौं जानी लेॅ
साबून सेॅ हाथ मली-मली धोहियोॅ
मनोॅ में आपनोॅ ठानी लेॅ।
ऐन्होॅ जों करभेॅ, बिमारी सेॅ बचभेॅ
स्वस्थ जिनगी जीलोॅ करोॅ॥


रोजे नहाबोॅ तोंय साबून लगाय
रगड़ी केॅ मैल छोड़हियोॅ हो भाय
साफे-सुथरा कपड़ोॅ पिनिहोॅ
नै तेॅ होथौं खुजली-दिनाय।

नोचथैं-भमोरथैं दिन तोरोॅ जैतों
आरो बैठी केॅ कानलोॅ करोॅ॥

पीये के पानी झाँपी केॅ राखिहोॅ
गरदा-धूरा नै पढ़थौं हो भाय
पीयै सेॅ पैह्नें छाँनी केॅ राखिहोॅ
तभिये स्वच्छ होथौं हो भाय।
स्वच्छ पानी पिला सेॅ बढ़थौं जिनगी
खुशी-खुशी किलोल करोॅ॥

विद्यालय केॅ केन्द्र बनाबोॅ
स्वच्छता के नारा दिहोॅ लगाय
गाँव-समाज आरो टोलोॅ-पड़ोसोॅ
सब्भै केॅ ई बात दिहोॅ बताय।
सब्भैं मिली के करोॅ सफाई
आरो प्रेम सेॅ साथें रहलोॅ करोॅ॥