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जाने किस चाह के किस प्यार के / ऐतबार साज़िद

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जाने किस चाह के किस प्यार के गुन गाते हो
रात दिन कौन से दिल-दार के गुन गाते हो

ये तो देखों के तुम्हें लूट लिया है उस ने
इक तबस्सुम पे ख़रीदार के गुन गाते हो

अपनी तनहाई पे नाजाँ हो मेरे सादा-मिज़ाज
अपने सूने दर ओ दीवार के गुन गाते हो

अपने ही ज़ेहन की तख़लीक़ पे इतने सरशार
अपने अफ़सानवी किरदार के गुन गाते हो

और लोगों के भी घर होते हैं घर वाले भी
सिर्फ़ अपने दर ओ दीवार की गुन गाते हो