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जाने क्यूँ लोग ख़त लिख़ना भूल जाते हैं / शमशाद इलाही अंसारी

जाने क्यूँ लोग ख़त लिख़ना भूल जाते हैं,
लिख्नना तो दूर जवाब देना भूल जाते हैं|

फ़ेर लेते हैं काग़ज़-कलम से मुँह अपना,
हर्फ़ों का कर्ज़ हर्फ़ से देना भूल जाते हैं|

माहिर-ए-गुफ़्तगू था गर्म बातें करता था बड़ी,
तर्ज़े अमल में अक्सर वो नारे भी भूल जाते हैं|

मैं तो लिखता ही रहा उसे कि जवाब देगा एक दिन,
ये अब दस्तूर है इनका कि वायदा भी भूल जाते हैं|

गर्क होता "शम्स" इंतज़ार में कि मिलने पहुँच गया,
मालूम हुआ कि लोग चेहरा देखकर भी भूल जाते हैं|


रचनाकाल : 01.01.2010