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जाल ऐसे बिछाए गए / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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जाल ऐसे बिछाए गए
लोग उल्लू बनाए गए
देश के रहनुमाओं के ही
दाग़ दामन में पाए गए
भूख के सब सताए हुए
भाषणों में भुलाए गए
शाह सब देखते रह गए
गीत चोरों के गाए गए
घर बनाए जिन्होंने यहां
वो ही बेघर बनाए गए
रौशनी बांटते जो रहे
ऐसे दीपक बुझाए गए
लूटते जो वतन को रहे
वो सुखी सब बताए गए
करने-धरने को था कुछ नहीं
सिर्फ़ नारे लगाए गए
बेवफ़ाई सभी से मिली
दोस्त जब आज़माए गए
फूल कुचले ‘मधुप’ सब गए
सर पे कांटे चढ़ाए गए