भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाळा / निशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूई रै कारखानै सूं
निकलेड़ै मजूर रै
चिपक्या है
अणथाक जाळा
अै चिपक्या हुसी
ईं रै भीतर ई

पण किणनै दिखै बै
न इण नै न कारखानै रै
धणी नै

बै निगै आसी
स्यात अेक दिन
सफाखानैआळी मसीन नै।