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जा कहे कू-ए-यार में कोई / अहसनुल्लाह ख़ान 'बयाँ'

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जा कहे कू-ए-यार में कोई
मर गया इंतिज़ार में कोई

छोड़ सौ काम आ पहुँच साक़ी
जाँ-ब-लब है ख़ुमार में कोई

वो भी क्या रात थी कि सोता था
सर रखे उस किनार में कोई

मत गुज़र ख़ाक पर शहीदों की
चैन ले टुक मज़ार में कोई

क्यूँ ‘बयाँ’ सैर-ए-बाग़ की रुख़्सत
नहीं देता बहार में कोई