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जा थल कीन्हें बिहार अनेकन / आलम
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जा थल कीन्हें बिहार अनेकन, ता थल काँकरी बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहु बातन, ता रसना सों चरित्र गुन्यो करैं।।
'आलम' जौन से कुंजन में करी केलि, तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जो सदा रहते, तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करैं।।
आलम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।