हमने ता-उम्र भटकने का मज़ा माँगा था
घर से अपने जो कभी अपना पता माँगा था
अलकुहल हो कि हो गंगा का मुक़द्दस पानी
हमने हर जाम में जीने का नशा माँगा था
तुमने क्यों मुझसे तअल्लुक़ में वफ़ा चाही थी
मैंने क्यों तुमसे वफ़ाओं का सिला मांगा था
अपनी झोली में लिए बैठा हूँ पत्थर कितने
जिंदगी! मैंने कभी तुमसे ख़ुदा माँगा था
आग की दलदली धरती से गुज़रने के लिए
मुझसा नादान! कि सहारे का असा माँगा था