जिंदगी का काफिला रुकते कभी देखा है क्या / रंजना वर्मा
जिंदगी का काफिला रुकते कभी देखा है क्या
मौत की खातिर किसी ने दर खुला रक्खा है क्या
फूल की घाटी रँगी जाने लगी है खून से
प्यार जो करता वतन से यों कभी करता है क्या
एक झोंका खुशबुओं का आ गया इस ओर भी
गुल भरा कोई चमन तुम ने कहीं पाया है क्या
दूर हो कर भी रहा करता नज़र के सामने
रुख़्सती जिस की हुई वो सामने रहता है क्या
मैं रहूँ परदे में यह तुम को गवारा कब हुआ
पर गये तुम जिस तरह पर्दा कोई करता है क्या
रात है खामोश चंदा भी इशारे कर रहा
आज महफ़िल में सितारों की कोई चर्चा है क्या
हैं हवायें संदली झुक कर लहर को चूमतीं
प्यास का दरिया उमड़ कर यूँ कहीं बहता है क्या
तुम हमेशा साथ हो ख्वाहिश यही दिल मे रही
छोड़ दे जो राह में वो हमसफ़र होता है क्या
एक पल में ही सभी अरमाँ हिमाला हो गये
सूखने के बाद गंगा के भला बचता है क्या