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जिंदगी की शाम ढ़लने लगी / तारा सिंह

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जिंदगी की शाम ढ़लने लगी
न तुम मिले, न तुम्हारा सहारा मिला

भटक गये गम के अंधेरे में हम
उम्र भर न तुम्हारा इशारा मिला

हम अकेले थे, दिल भी बीमार था
न दवा ही मिली,न तीमार-दारा मिला

मौत ने जब मुस्कुराकर पुकारा मुझे
लगा, जिंदगी को किनारा मिला

मिट गये जमाने के सारे गिले,अब
न शिकवा रहा, न शिकारा मिला

आ गये जिंदगी से बहुत दूर हम
न तुम मिले, न दामन तुम्हारा मिला

चलते-चलते आ गए हम किस मोड़ पर
जहाँ न सूरज मिला,न चाँद दुलारा मिला

दूर तक आसमां, आसमां था मगर
आसमां में न कोई सितारा मिला