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जिंदगी के चलन देखता रह गया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जिंदगी के चलन देखता रह गया
शख़्स वो खुद से ही हारता रह गया
जान की भी थी बाजी लगाई मगर
कुछ न पाया फ़क़त हौसला रह गया
रास्ते तो थे सारे ही काँटों भरे
डर गया जो रुका का रुका रह गया
झूठ को मिल गयी मंजिले जिंदगी
और सच बस खड़ा सोचता रह गया
चाहते थे गुज़ारिश करें आप से
सारा किस्सा मगर बे कहा रह गया
आप जब से गये छिन गयी हर खुशी
अब न जीने में कोई मज़ा रह गया
कद्र कोई हक़ीक़त की करता नहीं
और वो था कि सच बोलता रह गया
तीरगी घेरने है लगी इस तरह
रौशनी का न अब आसरा रह गया
चल रही है हवा यूँ जफ़ाओं की अब
की वफ़ा वो मगर बेवफ़ा रह गया