भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिंदगी को एक बहाना चाहिये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जिंदगी को इक बहाना चाहिये
दर्दो गम सब भूल जाना चाहिये
चार दिन की आपदा होती भली
अपनी हिम्मत आजमाना चाहिये
हो उठा तूफान या आँधी चले
छाँव दे वो आशियाना चाहिये
पांव में काँटे बनायें जख़्म पर
हर कदम आगे बढ़ाना चाहिये
जी रहे हैं लोग सब अपने लिये
दूसरों को भी हँसाना चाहिये
चाहते ग़र दुश्मनी पनपे नहीं
हाथ सब से ही मिलाना चाहिये
बिन विचारे कीजिये मत वायदे
ग़र किया है तो निभाना चाहिये
मुश्किलों को देख मत घबराइये
मुश्किलों से पार पाना चाहिये
फूल अमनो चैन के महके जहाँ
हर किसी को वो ठिकाना चाहिये
पूछते रहिये सभी से रास्ता
रस्मे दुनियाँ को निभाना चाहिये