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जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम

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जिंदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया

खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नहीं पाया

प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नहीं पाया

जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नहीं पाया

वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नहीं पाया

आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया

नाम "जगदीश" है कहा उसने
और कुछ भी बता नहीं पाया