एक कली 
भोर की मुस्कुराहट पहन 
रात का शबनमी कम्बल उतार
पंखुड़ी पंखुड़ी अंगड़ाई ले 
संवर उठी है 
मेरे मुकद्दर की
उन डालियों पर 
जहाँ ज़र्द पीले पत्तों का 
कमजोर-सा सरमाया था 
टूट पड़ने को आतुर 
जैसे मेरी सांसें 
जो अब बुरी तरह 
खटकने लगी हैं 
तुम्हारे सीने में 
मेरे नाजुक बदन का 
यह पहाड़-सा दर्द 
जिसको देखते बूझते 
तुम काँप जाते हो मुझसे 
तो सुनो 
मैंने मौत को अभी 
इंकार कर दिया है 
और ज़िन्दगी को हाँ कह दी है