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जिं़दगी है पर्वतों का भार / उर्मिल सत्यभूषण

जिं़दगी केवल नहीं है प्यार
यह भी जान लो
जिं़दगी है पर्वतों सा भार
यह भी जान लो।
आज कंधे बोझ से हैं झुके हुये
और इसके छंद भी हैं रुके हुये
अब न उठता भावना का ज्वार
यह भी जान लो
जान लो अब मूक सी अपनी डगर
जान लो यह शूलपथ लम्बा सफर
साथ है बस दर्द का अम्बार
यह भी जान लो
ये इरादों को हिला सकते नहीं
पांव अपने ये जला सकते नहीं
रास्ते के धधकते अंगार
यह भी जान लो।
आज शिखरों से बुलावा आ रहा
कौन यह ललकारता सा गा रहा
की चुनौती हमने यह स्वीकार
यह भी जान लो।