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जितने भी मयखाने हैं / कुँअर बेचैन
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जितने भी मयखाने हैं
सब तेरे दीवाने हैं
तेरे चितवन के आगे
सारे तीर पुराने हैं
शमा बुझी उनसे पहले
हैरत में परवाने हैं
जिन्हें न पढ़ पाए हम खुद
हम ऐसे अफ़साने हैं
कैसे खुद को ढूँढोगे
हर मन में तहखाने हैं
वो अपने निकले, जिनको
हम समझे बेगाने हैं