जिन्दगी के सम्हार∙ मधुर प्रेम से / रामेश्वर प्रसाद
जिंदगी के सम्हार∙ मधुर प्रेम से,
प्रेम अइसन कि जब-जीव हँसइत रहे।
जिन्दगी सुरसरित के धवल धार हए,
धार अइसन कि बेरोक बहइत रहे।।
जिन्दगी ईश के आस-विश्वास हए
जिन्दगी कृष्ण के राग-रत रास हए।
जिन्दगी फूल हए, हए भ्रमर भाव के,
हर जगह भाव के भोग चलइत रहे।।
लोभ-मद-मोह से मूल्य गिरइत रहल,
शून्य ले के धरासे मनुज ठक चलल।
मोह धन के बरहाल, नाश ले के चलल,
कुछ करू, प्रेम जग के जगवइत रहे।।
जग जगा के जवानी के उपहार दे,
चल रहल हए मनुज के परम प्यार दे।
प्रेम बिन जिन्दगी हए गरल, हए अनल,
कुछ करू, राग से मन मचलइत रहे।।
जग न हए चैन में अंध अपराध से,
जग हँसी, हम चलम जब ह्रदय साध के।
एकता देश-हित हए सुभग शक्तिदा,
चल∙ अइसन कि जग जाग चलइत रहे।।
देश ही हए धरम, देश पहचान हए,
देश पर गर्व हए, देश अभिमान हए।
देश हए जिंदगी, जिन्दगी देश हए,
देश हित हिम-सदृश प्राण गलइत रहे।।