भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन प्रेम रस चाखा नहीं / प्यारेलाल शोकी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन प्रेम रस चाखा नहीं, अमृत पिया तो क्या हुआ
जिन इश्क में सर ना दिया, सो जग जिया तो क्या हुआ

ताबीज औ तूमार में सारी उमर जाया किसी
सीखे मगर हीले घने, मुल्ला हुआ तो क्या हुआ

जोगी न जंगम से बड़ा, रंग लाल कपड़े पहन के
वाकिफ़ नहीं इस हाल से कपड़ रँगा तो क्या हुआ

जिउ में नहीं पी का दरद, बैठा मशायख होय कर
मन का रहत फिरता नहीं सुमिरन किया तो क्या हुआ

जब इश्क के दरियाव में, होता नहीं गरकाब ते
गंगा, बनारस, द्वारका पनघट फिरा तो क्या हुआ

मारम जगत को छोड़कर, दिल तन से ते खिलवत पकड़
शोकी पियारेलाल बिन, सबसे मिला तो क्या हुआ