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जिसको चाहे उछाल देता है / कैलाश झा 'किंकर'
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जिसको चाहे उछाल देता है
ज़िन्दगी को खँगाल देता है।
हाथ रखता है जिसकी गरदन पर
उसको बाहर निकाल देता है।
टाल सकना उसे नहीं मुमकिन
तर्क वह बे-मिसाल देता है।
जीतने के तमाम नुस्खों से
हर नतीजा कमाल देता है।
फूल खिलने की बात जब होती
एक उलझा सवाल देता है।
याद रहती है दोस्ती उसकी
वक्त पर जो सँभाल देता है।