(राग भैरव-ताल त्रिताल)
जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे प्रभुके अन्तस्की ओर।
उसके द्वन्द्व मिटे सारे, वह हुआ अमल आनन्द-विभोर॥
तमके सभी कारणोंका, तमका हो गया समूल विनाश।
मिला उसे आत्यन्तिक निर्मल शीतल सुखद अनन्त प्रकाश॥
(राग भैरव-ताल त्रिताल)
जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे प्रभुके अन्तस्की ओर।
उसके द्वन्द्व मिटे सारे, वह हुआ अमल आनन्द-विभोर॥
तमके सभी कारणोंका, तमका हो गया समूल विनाश।
मिला उसे आत्यन्तिक निर्मल शीतल सुखद अनन्त प्रकाश॥