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जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग भैरव-ताल त्रिताल)

 
जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे प्रभुके अन्तस्‌की ओर।
उसके द्वन्द्व मिटे सारे, वह हु‌आ अमल आनन्द-विभोर॥
तमके सभी कारणोंका, तमका हो गया समूल विनाश।
मिला उसे आत्यन्तिक निर्मल शीतल सुखद अनन्त प्रकाश॥