भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिससे तुमने ख़ुद को देखा, हम वो एक नज़रिया थे / दीप्ति मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिससे तुमने ख़ुद को देखा, हम वो एक नज़रिया थे
हम से ही अब क़तरा हो तुम, हम से ही तुम दरिया थे

सारा का सारा खारापन हमने तुम से पाया है
तुमसे मिलने से पहले तो, हम एक मीठा दरिया थे

मखमल की ख़्वाहिश थी तुमको, साथ भला कैसे निभता
हम तो संत कबीरा की झीनी-सी एक चदरिया थे

अब समझे, क्यों हर चमकीले रंग से मन हट जाता था
बात असल में ये थी, हम ही सीरत से केसरिया थे

जोग लिया फिर ज़हर पीया, मीरा सचमुच दीवानी थी
तुम अपनी पत्नी, गोपी और राधा के साँवरिया थे