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जिससे दिल ही न मिले उससे बात क्या करना / डी .एम. मिश्र

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जिससे दिल ही न मिले उससे बात क्या करना
साथ जो छोड़ दे फिर उसका साथ क्या करना

बात सुनने को जहां कोई भी तैयार नहीं
मौन ही ठीक वहां कोई बात क्या करना

जिससे ख़ुद को न सुकूं हो , न चैन औरों को
ऐसा फिर काम कोई वाहियात क्या करना

घोर जंगल है यहां जान का भी ख़तरा है
दिन ढले घर को लौट जाओ रात क्या करना

कब से हम जान हथेली पे लिए बैठे हैं
आइए सामने छुप करके घात क्या करना

इसका उत्तर किसी मसान में जाकर ढूंढो
सूख जाने के बाद फिर ये पात क्या करना

हम मोहब्बत के पुजारी हैं और कुछ भी नहीं
हमको इंसान से है प्यार जात क्या करना