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जिसे कहे बग़ैर नहीं रहा जाता / अरविन्द श्रीवास्तव

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हम
ज़िन्दगी का
फिर से करेंगे प्रत्यारोपण

हम फिर से उगायेंगे पलाश
लिखेंगे कविताएँ
रचेंगे प्रेम-पत्र

हम
रात-दिन, दिन-रात
एकटक
देखा करेंगे सपने

हम
बिछुड़ने के लिए
मिलेंगे
एक बार फिर

हम
चाहेंगे वही कहना
जिसे हम नहीं कह पाए

और
जिसे कहे बग़ैर
अब नहीं रहा जाता।