भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन.
दख्ल कुदरत के करिश्मों में भला देता है कौन.

चाँद पर आबाद हो इन्सां, उसे भी है पसंद,
उसकी मरज़ी गर न हो, ऊंचाइयां छूता है कौन.

सब नताइज हैं हमारे नेको-बद आमाल के,
किसके हिस्से में है इज्ज़त, दर-ब-दर रुसवा है कौन.

अक़्ल ने अच्छे-बुरे की दी है इन्सां को तमीज़ ,
अपने घर से दुश्मनी पर फिर भी आमादा है कौन.

इस बशर में हैं दरिंदों की भी सारी खस्लतें,
देखना ये है कि इनसे दायमी निकला है कौन.

हो न गर ईमान, फिर मज़हब से है क्या फ़ायदा,
दिल में रखकर मैल, क्या समझे कोई अच्छा है कौन।