भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का.. / श्रद्धा जैन
Kavita Kosh से
जिस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का
वो सरापा है ताज फूलों का
तुम ही तुम हो जिधर निगाह करूँ
मेरे घर में है, राज फूलों का
बुतपरस्ती भली सही लेकिन
सुन तो लें एहतिजाज<ref>विरोध</ref> फूलों का
ओस से ताज़गी मिले तो मिले
आग से क्या इलाज फूलों का
सारे रंगों की क़द्र करना सीख
फिर बनेगा समाज फूलों का
सब्र जो है यतीम बच्चों को
बस यही है अनाज फूलों का
खुशबूएँ बाँटती रहो ‘श्रद्धा’
हाँ यही है रिवाज फूलों का
शब्दार्थ
<references/>